Saturday, October 8, 2016

कथा शहंशाहच्या भेटीची

साल  असावे  2011.. सिंबायोसिस  च्या  एका  संस्थेत  सेवा  बजावत  असताना  आलेला  हा  योग  कधी  न विसरण्या सारखा. त्या  वेळी  कौन  बनेगा करोडपती  चा  दुसरा  सीजन चालू  झाला  होता.  प्रेक्षक  संख्या जास्त  दिसावी  ह्या  करीता मिडिया  च्या  विद्यार्थ्याना पाचारण केले  जाते...का तर, पुढील काळात  त्यांना  असे  कार्यक्रम  तांत्रिक  अनुषंगाने  कळावेत.  पुण्याहून  सकाळी लवकर  निघून  गोरेगाव  येथे  पोहोचण्यास  वेळ  लागलाच. दादासाहेब फाळके  चित्रनगरीत सोळा  नंबर  स्टुडिओत  आमची  जेवणाची  व्यवस्था  सोनी  वाहीनी तर्फे  केलेली  होती. आमच्या  आधीच  काही  मंडळी  येऊन  थांबली होती  प्रत्येकाला आत  सेटवर  कधी  जातो  असे  झाले  होते. बच्चन  सरांना  बघता  येणार  ते ही  याचि देही  याचि डोळा... दुग्धशर्करा योग  आला  होता.  दोनेक  च्या  सुमारास  आत  जायचा  पुकारा  झाला आणि  गारेगार  वातावरणात  प्रवेश  करते झालो. नजर  भिरभिरत  सरांना  शोधत होती  पण  तेच  दिसत  नव्हते. वाहीनी ची लोक  स्पर्धकांना  टिप्स  देण्यात  मग्न होते. अधूनमधून सेट  स्वच्छ  दिसण्या करिता  पोछा मारायचे  काम केले  जात  होते. आम्हाला  पण  कसे  हसायचे आणि  कशाप्रकारे  टाळ्या  पिटायच्या ह्याची  तयारी  करवून  घेतली  गेली. सूत्रबद्ध  आणि  शिस्तीत  काम  चालू होते.  हे  सगळं  होऊस्तोवर पाच  कधी  वाजले  कळलेच नाही  तेवढ्यात  दस्तुरखुद्द अमिताभ बच्चन यांचे  आगमन  झाले.  आणि  सुरू  झाला  एक  रोमांचक  शो जो  इतके दिवस  टिव्हीवर  पहात  आलो होतो....तो  आज  समोर  घडताना  बघत होतो  एका  अचाट  शक्तीचा  अनुभव  घेत  होतो. व्यावसायिक  कलाकार  म्हणजे  काय  हे  तिथेच  कळले.  सेटवरचा माहोल  इतका बदलला  की  सर्व जण  तल्लीन  होऊन गेले. त्यांनी आलेल्या  प्रेक्षकांशी संवाद  साधत  ही  कामगिरी  लिलया पार  पाडली. नेटके  आयोजन  तितकाच  ताकदीचा  कलाकार  हा  योग  मस्त  जुळून  आला  होता. मध्येच  एक  पावसाची  जोरदार  सर  आल्याने  चक्क  शुट थांबले  कारण  वरच्या  पत्र्यावर  वाजणारा  आवाज  काहीसा  भयावह  होता. पण  नंतर  सर्व काही  सुरळीत पार पडले. कार्यक्रम  संपल्यावर  बच्चन  सर  स्वतः येऊन  प्रेक्षका बरोबर  फोटो  काढून  घेत  होते.  सुंदर  असा  हा  पाच  तासांचा  प्रवास  संपल्यावर  मनाला  हुरहूर  लागुन  राहीली  आता  परत  कधी  हा  योग  पुन्हा  येणार  नाही  ह्याची. ते  पाच  तास  खरतरं आयुष्यातील  सुखद अनुभव  म्हणून  मी  जपून  ठेवले  ते  कायमचेच...

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